Shani Dev: The Mysterious God of Karma
In Hindu mythology, there are countless gods and goddesses who are
revered and worshiped by millions of people. One of the most intriguing
of them all is Shani Dev, also known as Saturn, the god of karma. Shani
Dev is considered to be the son of Surya Dev, the Sun god, and is
believed to be a powerful deity who controls the movements of the
planets.
Shani Dev is usually depicted as a dark-skinned man, wearing black clothes
and a crown on his head. He is often portrayed sitting on a buffalo or a
crow, with a sword in his hand. He is a feared deity, as his punishments are
believed to be harsh and unforgiving. However, he is also respected and
revered, as his blessings can bring great fortune and prosperity.
According to Hindu mythology, Shani Dev is the lord of justice and the
dispenser of karmic justice. He is believed to be responsible for the
rewards and punishments that individuals receive for their deeds. If someone
has done good deeds, Shani Dev rewards them with prosperity and happiness.
However, if someone has done evil deeds, Shani Dev punishes them with
misfortune and suffering.
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Shani Dev is also believed to be the most powerful among the nine planets
(navagrahas) in Hindu astrology. His influence is said to be particularly
strong during the period of his transit (Shani sade sati), which occurs
approximately every 29.5 years. During this period, individuals may
experience hardships and challenges, which are believed to be a result of
their past actions.
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Despite his fearsome reputation, Shani Dev is also known to be a
benevolent deity who can bestow blessings upon his devotees. Many people
worship him in the hope of receiving his blessings and avoiding his
punishments. Some common rituals associated with the worship of Shani Dev
include lighting oil lamps (diyas), offering black sesame seeds and
mustard oil, and reciting mantras.
In conclusion, Shani Dev is a mysterious and complex deity who embodies
the concepts of justice, karma, and destiny. He is both feared and
respected by millions of people, and his influence is felt throughout
Hindu mythology and astrology. Whether you believe in his power or not, it
is clear that Shani Dev occupies a unique and fascinating place in Hindu
culture and spirituality.
शनि देव: कर्म के रहस्यमय भगवान
हिंदू पौराणिक कथाओं में, अनगिनत देवी-देवता हैं जो लाखों लोगों द्वारा
पूजनीय और पूजे जाते हैं। उनमें से सबसे पेचीदा शनि देव हैं, जिन्हें
कर्म के देवता शनि के रूप में भी जाना जाता है। शनि देव को सूर्य देव,
सूर्य देव का पुत्र माना जाता है, और माना जाता है कि वे एक शक्तिशाली
देवता हैं जो ग्रहों की चाल को नियंत्रित करते हैं।
शनि देव को आमतौर पर एक काले रंग के व्यक्ति के रूप में चित्रित किया जाता
है, जो काले कपड़े पहने होते हैं और उनके सिर पर एक मुकुट होता है। उन्हें
अक्सर भैंस या कौवे पर बैठे हुए चित्रित किया जाता है, जिसके हाथ में तलवार
होती है। वह एक आशंकित देवता है, क्योंकि उसके दंड को कठोर और अक्षम्य माना
जाता है। हालाँकि, उनका सम्मान और सम्मान भी किया जाता है, क्योंकि उनका
आशीर्वाद महान भाग्य और समृद्धि ला सकता है।
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, शनि देव न्याय के देवता और कर्म न्याय के
वितरक हैं। उन्हें उन पुरस्कारों और दंडों के लिए जिम्मेदार माना जाता है जो
व्यक्तियों को उनके कर्मों के लिए मिलते हैं। अगर किसी ने अच्छे कर्म किए हैं
तो शनिदेव उन्हें समृद्धि और खुशी का पुरस्कार देते हैं। हालांकि, अगर किसी
ने बुरे कर्म किए हैं, तो शनि देव उन्हें दुर्भाग्य और पीड़ा का दंड देते
हैं।
हिंदू ज्योतिष में शनि देव को नौ ग्रहों (नवग्रहों) में सबसे शक्तिशाली भी
माना जाता है। उनके पारगमन (शनि साढ़े साती) की अवधि के दौरान उनका प्रभाव
विशेष रूप से मजबूत कहा जाता है, जो लगभग हर 29.5 वर्षों में होता है। इस
अवधि के दौरान, व्यक्तियों को कठिनाइयों और चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता
है, जो कि उनके पिछले कार्यों का परिणाम माना जाता है।
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अपनी भयानक प्रतिष्ठा के बावजूद, शनि देव एक दयालु देवता के रूप में भी जाने
जाते हैं जो अपने भक्तों को आशीर्वाद दे सकते हैं। बहुत से लोग उनका आशीर्वाद
पाने और उनके दंड से बचने की आशा में उनकी पूजा करते हैं। शनि देव की पूजा से
जुड़े कुछ सामान्य अनुष्ठानों में तेल का दीपक (दीया) जलाना, काले तिल और
सरसों का तेल चढ़ाना और मंत्रों का जाप करना शामिल है।
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अंत में, शनि देव एक रहस्यमय और जटिल देवता हैं जो न्याय, कर्म और भाग्य की
अवधारणाओं का प्रतीक हैं। वह लाखों लोगों द्वारा आशंकित और सम्मानित दोनों
हैं, और उनका प्रभाव पूरे हिंदू पौराणिक कथाओं और ज्योतिष में महसूस किया
जाता है। आप उनकी शक्ति पर विश्वास करें या न करें, यह स्पष्ट है कि शनि देव
हिंदू संस्कृति और आध्यात्मिकता में एक अद्वितीय और आकर्षक स्थान रखते
हैं।
Shani Dev Images
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Shani Dev Photo
Shani Dev Ki Aarti (Aarti Shani Dev Ki)
|| Shri Shani Dev Aarti ||
Jai Jai Shri Shanidev Bhaktan Hitkari।
Suraj Ke Putra Prabhu Chhaya Mahtari॥
॥ Jai Jai Shri Shanidev..॥
Shyam Ang Vakra-Drishti Chaturbhuja Dhaari।
Nilambar Dhaar Nath Gaj Ki Asawari॥
॥ Jai Jai Shri Shanidev..॥
Kreet Mukut Sheesh Rajit Dipat Hai Lilari।
Muktan Ki Maala Gale Shobhit Balihari॥
॥ Jai Jai Shri Shanidev..॥
Modak Mishthan Paan Chadat Hai Supari।
Loha, Til, Tel, Udad Mahishi Ati Pyari॥
॥ Jai Jai Shri Shanidev..॥
Dev Danuj Rishi Muni Sumirat Nar Naari।
Vishwanath Dharat Dhyaan Sharan Hian Tumhari॥
॥ Jai Jai Shri Shanidev..॥
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॥ श्री शनि देव आरती ॥
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी ।
सूरज के पुत्र प्रभु छाया महतारी ॥
॥ जय जय श्री शनिदेव..॥
श्याम अंक वक्र दृष्ट चतुर्भुजा धारी ।
नीलाम्बर धार नाथ गज की असवारी ॥
॥ जय जय श्री शनिदेव..॥
क्रीट मुकुट शीश रजित दिपत है लिलारी ।
मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी ॥
॥ जय जय श्री शनिदेव..॥
मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी ।
लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी ॥
॥ जय जय श्री शनिदेव..॥
देव दनुज ऋषि मुनि सुमरिन नर नारी ।
विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी ॥
॥ जय जय श्री शनिदेव..॥
Shani Dev Chalisa
|| श्री शनिदेव चालीसा ||
॥ दोहा ॥
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल।
दीनन के दुख दूर करि, कीजै नाथ निहाल॥
जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज।
करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज॥
॥ चौपाई ॥
जयति जयति शनिदेव दयाला।
करत सदा भक्तन प्रतिपाला॥
चारि भुजा, तनु श्याम विराजै।
माथे रतन मुकुट छबि छाजै॥
परम विशाल मनोहर भाला।
टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला॥
कुण्डल श्रवण चमाचम चमके।
हिय माल मुक्तन मणि दमके॥
कर में गदा त्रिशूल कुठारा।
पल बिच करैं अरिहिं संहारा॥
पिंगल, कृष्णो, छाया नन्दन।
यम, कोणस्थ, रौद्र, दुखभंजन॥
सौरी, मन्द, शनी, दश नामा।
भानु पुत्र पूजहिं सब कामा॥
जा पर प्रभु प्रसन्न ह्वैं जाहीं।
रंकहुँ राव करैं क्षण माहीं॥
पर्वतहू तृण होई निहारत।
तृणहू को पर्वत करि डारत॥
राज मिलत बन रामहिं दीन्हयो।
कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो॥
बनहूँ में मृग कपट दिखाई।
मातु जानकी गई चुराई॥
लखनहिं शक्ति विकल करिडारा।
मचिगा दल में हाहाकारा॥
रावण की गति-मति बौराई।
रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई॥
दियो कीट करि कंचन लंका।
बजि बजरंग बीर की डंका॥
नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा।
चित्र मयूर निगलि गै हारा॥
हार नौलखा लाग्यो चोरी।
हाथ पैर डरवायो तोरी॥
भारी दशा निकृष्ट दिखायो।
तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो॥
विनय राग दीपक महं कीन्हयों।
तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों॥
हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी।
आपहुं भरे डोम घर पानी॥
तैसे नल पर दशा सिरानी।
भूंजी-मीन कूद गई पानी॥
श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई।
पारवती को सती कराई॥
तनिक विलोकत ही करि रीसा।
नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा॥
पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी।
बची द्रौपदी होति उघारी॥
कौरव के भी गति मति मारयो।
युद्ध महाभारत करि डारयो॥
रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला।
लेकर कूदि परयो पाताला॥
शेष देव-लखि विनती लाई।
रवि को मुख ते दियो छुड़ाई॥
वाहन प्रभु के सात सुजाना।
जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना॥
जम्बुक सिंह आदि नख धारी।
सो फल ज्योतिष कहत पुकारी॥
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं।
हय ते सुख सम्पति उपजावैं॥
गर्दभ हानि करै बहु काजा।
सिंह सिद्धकर राज समाजा॥
जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै।
मृग दे कष्ट प्राण संहारै॥
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी।
चोरी आदि होय डर भारी॥
तैसहि चारि चरण यह नामा।
स्वर्ण लौह चाँदी अरु तामा॥
लौह चरण पर जब प्रभु आवैं।
धन जन सम्पत्ति नष्ट करावैं॥
समता ताम्र रजत शुभकारी।
स्वर्ण सर्व सर्व सुख मंगल भारी॥
जो यह शनि चरित्र नित गावै।
कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै॥
अद्भुत नाथ दिखावैं लीला।
करैं शत्रु के नशि बलि ढीला॥
जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई।
विधिवत शनि ग्रह शांति कराई॥
पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत।
दीप दान दै बहु सुख पावत॥
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा।
शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा॥
॥ दोहा ॥
पाठ शनिश्चर देव को, की हों भक्त तैयार।
करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार॥
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|| Shri Shani Dev Chalisa ||
॥ Doha ॥
Jai Ganesh Girija Suwan, Mangal Karan Krapal ।
Deenan Ke Dhuk Dhoor Kari, Kheejain Nath Nihal ॥
Jai Jai Shri Shanidev Prabhu, Sunahu Vinay Maharaj ।
Karahu Krapa Hey Ravi Tanay, Rakhahu Jan Ki Laaj ॥
॥Chaupai॥
Jayati Jayati Shanidev Dayala ।
Karat Sada Bhaktan Pratipala ॥
Chari Bhuja, Tanu Shyam Virajai ।
Mathey Ratan Mukut Chavi Chajai ॥
Param Vishal Manohar Bhala ।
Tedi Dhrishti Bhrukuti Vikrala ॥
Kundal Shravan Chamacham Chamke ।
Hiy Mal Muktan Mani Dhamke ॥ 4 ॥
Kar Me Gada Trishul Kutara ।
Pal Bich Karai Arihi Samhara ॥
Pinghal, Krishno, Chaya, Nandan ।
Yum, Konasth, Raudra, Dhukbhanjan ॥
Sauri, Mandh Shani, Dash Nama ।
Bhanu Putra Poojhin Sab Kama ॥
Ja par Prabu Prasann Havain Jhahin ।
Rankahun Raav Karain Shan Mahin ॥
Parvatahu Tran Hoi Niharat ।
Tranhu Ko Parvat Kari Darat ॥
Raj Milat Ban Ramhin Dinhyo ।
Kaikeyihu Ki Mati Hari Linhiyo ॥
Banhun Main Mrag Kapat Dhikayi ।
Matu Janki Gayi Churayi ॥
Lakhanhin Shakti Vikal Karidara ।
Machiga Dal Main Hahakara ॥
Ravan Ki GatiMati Baurayi ।
Ramchandra Saun Bair Badhayi ॥
Dhiyo Keet Kari Kanchan Lanka ।
Baji Bajarang Beer Ki Danka ॥
Nrap Vikram Par Tuhin Pagu Dhara ।
Chitra Mayur Nigali Gai Hara ॥
Har Naulakkha Lagyo Chori ।
Hath Pair Darvay Tori ॥
Bhari Dhasha Nikrasht Dhikayo ।
Telihin Ghar Kolhu Chalvayo ॥
Vinay Rag Dheepak Mah Khinhyo ।
Tab Prasann Prabhu Hvai Sukh Dhinhayo ॥
Harishchandra Nrap Naari Bikani ।
Apahun Bhare Dom Gar Pani ॥
Taise Nal Par Dasha Sirani ।
BhunjiMin Kood Gayi Pani ॥
Sri Shankarhin Gahyo Jab Jayi ।
Parvati Ko Sati Karayi ॥
Tanik Vilokat Hi Kari Risa ।
Nabh Udi Gayo Gaurisut Sisa ॥
Pandav Par Bhai Dasha Thumhari ।
Bachi Draupadi Hoti Udhari ॥
Kaurav Ke Bhi Gati Mati Maryo ।
Yuddh Mahabharat Kari Daryo ॥
Ravi Kahn Mukh Mahn Dhari Tatkala ।
Lekar Koodi Paryo Patala ॥
Shesh DevLakhi Vinti Layi ।
Ravi Ko Mukh Tai Dhiyo Chudayi ॥
Vahan Prabhu Ke Sat Sujana ।
Jag Diggaj Gardhabh Mrag Swana ॥
Jambuk Sinh Aadi Nakh Dhari ।
So Phal Jyotish Kahat Pukari ॥
Gaj Vahan Lakshmi Grah Aavain ।
Hay Te Sukh Sampati Upjavain ॥
Gadarbh Hani Karai Bahu Kaja ।
Sinh Sidhkar Raj Samaja ॥
Jambuk Buddhi Nasht Kar Darai ।
Mrag De Kasht Pran Sanharai ॥
Jab Aavahi Prabu Swan Savari ।
Chori Aadi Hoy Dar Bhari ॥
Taisahi Chari Charan Yah Nama ।
Swarn Lauh Chandi Aru Tama ॥
Lauh Charan Par Jab Prabu Aavain ।
Dhan Jan Sampati Nasht Karavain ॥
Samata Tamra Rajat Shubhkari ।
Swarn Sarv Sarv Sukh Mangal Bhari ॥
Jo Yah Shani Charitra Nit Gavai ।
Kabahun Na Dasha Nikrasht Satavai ॥
Adbhut Nath Dhikhavain Leela ।
Karain Shatru Ke Nashi Bali Deela ॥
Jo Pandit Suyogya Bulvayi ।
Vidhvat Shani Grah Shanti Karayi ॥
Peepal Jal Shani Diwas Chadhavat ।
Deep Daan Dai Bahu Sukh Pawat ॥
Kahat Ram Sundar Prabu Dasa ।
Shani Sumirat Sukh Hot Prakasha ॥
॥ Doha ॥
Path Shanishchar Dev Ko, Ki Hon Bhakt Taiyar ।
Karat Path Chalis Din, Ho Bhavasagar Paar ॥
Shani Dev Aarti Lyrics
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।
सूर्य पुत्र प्रभु छाया महतारी॥
जय जय श्री शनि देव....
श्याम अंग वक्र-दृष्टि चतुर्भुजा धारी।
नी लाम्बर धार नाथ गज की असवारी॥
जय जय श्री शनि देव....
क्रीट मुकुट शीश राजित दिपत है लिलारी।
मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी॥
जय जय श्री शनि देव....
मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी।
लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी॥
जय जय श्री शनि देव....
जय जय श्री शनि देव....
देव दनुज ऋषि मुनि सुमिरत नर नारी।
विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी॥
जय जय श्री शनि देव भक्तन हितकारी।।
जय जय श्री शनि देव....
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Shani Dev Mantra
“Om Shri Shani Devaayah Namo Namh
Om Shri Shani Devaayah Shanti Bhavah
Om Shri Shani Devaayah Shubham Falh
Om Shri Shani Devaayah Falh Prapti Falh”
“Nilanjana samabhasam raviputram yamagrajam.
Chaya martanda sambhutam tam namami shaishcharam.”
“Om praam preem praum sah shanayishraya namah.”
“Om kaakadhwajaaya vidmahae
khadga hastaaya dheemahi
tanno mandah prachodayaat”
“Om Sham Shanaiscaryaye Namah.”
Shani Dev Ki Katha - शनिदेव व्रत कथा
एक समय की बात है. सभी ग्रहों में सर्वश्रेष्ठ होने को लेकर विवाद हो गया.
वे सभी ग्रह सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु
इंद्र देव के पास गए. वे भी निर्णय करने में असमर्थ थे, तो उन्होंने सभी
ग्रहों को पृथ्वी पर राजा विक्रमादित्य के पास भेज दिया क्योंकि वे एक
न्यायप्रिय राजा थे.
सभी ग्रह राजा विक्रमादित्य के पास पहुंचे और अपने विवाद के बारे में
बताया. राजा विक्रमादित्य ने सोच विचार के बाद नौ धातु स्वर्ण, रजत,
कांस्य, पीतल, सीसा, रांगा, जस्ता, अभ्रक और लौह से सिंहासन बनवाया और उनको
क्रम से रख दिया. उन्होंने सभी ग्रहों से इस पर बैठने को कहा. साथ ही कहा
कि जो सबसे बाद में बैठेगा, वह सबसे छोटा ग्रह होगा. लोहे का सिंहासन सबसे
अंत में था, जिस वजह से शनि देव सबसे अंत में बैठे. इस वजह से वे नाराज हो
गए.
उन्होंने राजा विक्रमादित्य से कहा कि तुमने जानबूझकर ऐसा किया है. तुम
जानते नहीं हो कि जब शनि की दशा आती है तो वह ढाई से सात साल तक होती है.
शनि की दशा आने से बड़े से बड़े व्यक्ति का विनाश हो जाता है. शनि की
साढ़ेसाती आई तो राम को वनवास हुआ और रावण पर शनि की महादशा आई तो उसका
सर्वनाश हो गया. अब तुम सावधान रहना.
कुछ समय बाद राजा विक्रमादित्य पर शनि की महादशा शुरू हो गई. तब शनि देव
घोड़ों का व्यापारी बनकर उनके राज्य में आए. राजा विक्रमादित्य को पता चला
कि एक सौदागर अच्छे घोड़े लेकर आया है, तो उन्होंने उनको खरीदने का आदेश
दिया. एक दिन राजा विक्रमादित्य उनमें से एक घोड़े पर बैठे, तो वो उनको
लेकर जंगल में भाग गया और गायब हो गया.
राजा विक्रमादित्य का बुरा वक्त शुरु हो गया. भूख प्यास से वे तड़प रहे थे,
तो एक ग्वाले ने पानी पिलाया, तो राजा ने उसे अपनी अंगूठी दे दी. फिर नगर
की ओर चल दिए. एक सेठ के यहां पानी पिया. अपना नाम उज्जैन का वीका बताया.
सेठ वीका को लेकर घर गया. वहां उसने देखा कि एक खूंटी पर हार टंगा है और
खूंटी उसे निगल रही है. देखते ही देखते हार गायब हो गया. हार चुराने के
आरोप में सेठ ने वीका को कोलवाल से पकड़वा दिया.
वहां के राजा ने वीका का हाथ-पैर कटवा दिया और नगर के बाहर छोड़ने का आदेश
दिया. वहां से एक तेली गुजर रहा था, वीका को देखकर उस पर दया आई. उसने उसे
बैलगाड़ी में बैठाकर आगे चल दिया. उस समय शनि की महादशा समाप्त हो गई. वीका
वर्षा ऋतु में मल्हार गा रहा था, उस राज्य की राजकुमारी मनभावनी ने उसकी
आवाज सुनी, तो उससे ही विवाह करने की जिद पर बैठ गई. हारकर राजा ने बेटी की
विवाह वीका से कर दिया.
एक रात शनि देव ने वीका को स्वप्न में दर्शन दिए और कहा कि तुमने मुझे छोटा
कहने का परिणाम देख लिया. तब राजा विक्रमादित्य ने शनि देव से क्षमा मांगी
और कहा कि उनके जैसा दुख किसी को न दें. तब शनि देव ने कहा कि जो उनकी कथा
का श्रवण करेगा और व्रत रहेगा, उसे शनि दशा में कोई दुख नहीं होगा. शनि देव
ने राजा विक्रमादित्य के हाथ और पैर वापस कर दिए.
जब सेठ को पता चला कि मीका तो राजा विक्रमादित्य हैं, तो उसने उनका आदर
सत्कार अपने घर पर किया और अपनी बेटी श्रीकंवरी से उनका विवाह कर दिया.
इसके बाद राजा विक्रमादित्य अपनी दो पत्नियों मनभावनी एवं श्रीकंवरी के साथ
अपने राज्य लौट आए, जहां पर उनका स्वागत किया गया. राजा विक्रमादित्य ने
कहा कि उन्होंने शनि देव को छोटा बताया था, लेकिन वे तो सर्वश्रेष्ठ हैं.
तब से राजा विक्रमादित्य के राज्य में शनि देव की पूजा और कथा रोज होने
लगी.
Shani Dev Vrat Story
Once upon a time. There was a dispute about being the best among all the
planets. All those planets Sun, Moon, Mars, Mercury, Guru, Venus, Saturn,
Rahu and Ketu went to Indra Dev. He was also unable to decide, so he sent
all the planets on the earth to King Vikramaditya because he was a just
king.
All the planets reached King Vikramaditya and told about their dispute.
King Vikramaditya, after careful thought, made a throne made of nine
metals gold, silver, bronze, brass, lead, ranga, zinc, mica and iron and
placed them in order. He asked all the planets to sit on it. Also said
that the one who sits last will be the smallest planet. The iron throne
was at the end, due to which Shani Dev sat at the end. Because of this
they got angry.
He told King Vikramaditya that you have done this intentionally. You
don't know that when Saturn's condition comes, it lasts for two and a half
to seven years. Due to the dasha of Shani, even the biggest person gets
destroyed. When Shani's half-and-half came, Ram went into exile and when
Shani's Mahadasha came on Ravana, he was annihilated. Now you be
careful.
After some time, the Mahadasha of Shani started on King Vikramaditya.
Then Shani Dev came to his kingdom by becoming a horse trader. King
Vikramaditya came to know that a merchant had brought good horses, so he
ordered to buy them. One day King Vikramaditya sat on one of those horses,
so he took them and ran into the forest and disappeared.
King Vikramaditya's bad time started. When he was suffering from hunger
and thirst, a cowherd gave him water, then the king gave him his ring.
Then went towards the city. Drank water at Seth's place. Told his name as
Vika of Ujjain. Seth went home with Vika. There he saw that the necklace
was hanging on a peg and the peg was swallowing it. The necklace
disappeared in no time. Seth gets Vika arrested from Kolwal on the charge
of stealing the necklace.
The king there cut off Vika's hands and legs and ordered her to leave
outside the city. A telli was passing from there, seeing Vika, he felt
pity. He made her sit in the bullock cart and went ahead. At that time the
Mahadasha of Shani ended. Vika was singing Malhar in the rainy season,
when Manbhavani, the princess of that kingdom heard his voice, she
insisted on marrying him only. Defeated, the king married his daughter to
Vika.
One night Shani Dev appeared to Vika in a dream and said that you have
seen the result of calling me small. Then King Vikramaditya apologized to
Shani Dev and said that do not give sorrow like him to anyone. Then Shani
Dev said that the one who listens to his story and observes a fast, he
will not suffer any sorrow in Shani Dasha. Shani Dev returned the hands
and feet of King Vikramaditya.
When Seth came to know that Mika was King Vikramaditya, he honored him at
his home and married him to his daughter Srikanwari. After this, King
Vikramaditya returned to his kingdom with his two wives, Manbhavani and
Srikanwari, where he was welcomed. King Vikramaditya said that he had
called Shani Dev small, but he is the best. Since then, in the kingdom of
King Vikramaditya, the worship and story of Shani Dev started happening
daily.
Shani Dev Mantra In Hindi
शनि बीज मंत्र- "ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।"
सामान्य मंत्र- "ॐ शं शनैश्चराय नमः।"
शनि महामंत्र- "ॐ निलान्जन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम। छायामार्तंड संभूतं
तं नमामि शनैश्चरम॥"
शनि का वैदिक मंत्र- "ऊँ शन्नोदेवीर-भिष्टयऽआपो भवन्तु पीतये
शंय्योरभिस्त्रवन्तुनः।"
शनि गायत्री मंत्र- "ऊँ भगभवाय विद्महैं मृत्युरुपाय धीमहि तन्नो शनिः
प्रचोद्यात्।"
तांत्रिक शनि मंत्र- "ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।"
शनि दोष निवारण मंत्र- "ऊँ त्रयम्बकं यजामहे सुगंधिम पुष्टिवर्धनम।
उर्वारुक मिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मा मृतात।।ॐ शन्नोदेवीरभिष्टय आपो
भवन्तु पीतये।शंयोरभिश्रवन्तु नः। ऊँ शं शनैश्चराय नमः।।"